प्राइज अर्निंग रेशियो | किसी कंपनी के शेयर का प्राइज अनिंग (P.E.) अनुपात शेयर मूल्य व उस पर होने वाली आय का संबंध स्थापित करता है। P.E. अनुपात निवेशक के लिए एक विश्वसनीय संकेत है। इससे निवेश संबंधी निर्णय लेने में अधिक सुविधा मिलती है। प्रति शेयर आय (अर्निंग प्राइज शेयर) भी एक सर्वमान्य संकेत है, जिससे ज्ञात होता है कि प्रति शेयर पर निवेशक को कितनी आय होती है। प्रायः निवेशक मुख्य रूप-से कंपनी की प्रति शेयर आय की ओर ही अधिक ध्यान देता है और वह उनको कितनी धनराशि में प्राप्त कर रहा है, यह गणना करने में प्राइज अर्निंग अनुपात का प्रयोग किया जाता है।
प्राइज अर्निंग रेशियो- P.E Ratio in Hindi
जब आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं, तो आपकी उस कंपनी में आपके द्वारा खरीदे गए शेयरों के अनुपात में स्वामित्व में भागीदारी हो जाती है। शेयरों को खरीदने के लिए दिया गया मूल्य आपको उन पर प्राप्त लाभ पर निर्भर करता है। शेयरधारकों को कंपनी अपने सभी व्यय, लेनदारों को भुगतान, ह्रास के निमित्त प्रावधान और करों के प्रावधान के बाद शेष लाभ में से शेयरों के अनुपात में लाभ वितरित करती है।
शेयर मार्किट से जुडी जानकारी- Share market knowledge in Hindi
कभी-कभी प्राइज अर्निंग अनुपात निवेशक को भ्रमित भी करते हैं। यह इसलिए है, क्योंकि प्राइज अर्निंग अनुपात वर्तमान का मूल्य और पिछले वर्ष की प्रति शेयर, आय के आधार पर ज्ञात किया जाता है, जबकि निवेशक मुख्य रूप से कंपनी के चालू और भविष्य के अर्निंग प्राइज शेयर के ऊपर अधिक ध्यान देता है। जब आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं, तो आप उस कंपनी की भविष्य में आय पर ध्यान देते हैं, न कि उसके अतीत के लाभ पर। जब एक कंपनी का P.E. अनुपात अधिक हो, तो निम्न धारणाएं उद्घाटित होती हैं-
- कंपनी निकट भविष्य में अत्यधिक वृद्धि करने वाली है |
- निवेशकों और अन्य शेयर मार्केट के लोगों को कंपनी में अत्यधिक विश्वास है।
अधिक पी०ई० (P.E ) वाले शेयर केसे होते हैं :
जिन कंपनियों का पी०ई० (प्राइज अर्निंग) अनुपात बहुत ज्यादा है, ऐसे कंपनियों के शेयर न खरीदना ही अच्छा है, क्योंकि अत्यधिक वृद्धियां करने वाली कंपनियां बहुत कम हैं और ऐसी कंपनी का विश्लेषण व प्रचार बड़े पैमाने पर किया जाता है, जिसके फलस्वरूप इसके शेयरों के मूल्यों में बहुत कम वृद्धि होती है।
जिन कंपनियों का पी०ई० कम होता है, उन कंपनियों के भविष्य में निवेशकों का विश्वास कम होता है। प्रायः कम पी०ई० अनुपात वाली कंपनियों में निवेशक सामान्यत उनके शेयरों को अधिक मूल्य पर खरीदने को तैयार नहीं होते, यद्यपि उनका ई०पी०एस० ( Earning per share E.PS ) बहुत अधिक होता है। दूसरी ओर कम ई०पी०एस० आकर्षक निवेश के अवसर भी प्रदान करता है।
कम पी०ई० (प्राइज अर्निंग) वाले शेयर केसे होते हैं :
(Low P.E Ratio) कम पी०ई० अनुपात वाली कंपनी अपेक्षाकृत प्रसिद्ध भी कम ही होती है। कभी-कभी अधिक उन्नतिशील कंपनी का भी निवेशकों के अज्ञान, कम रुचि के कारण कम पी०ई० ( P.E ) अनुपात हो सकता है। जब आप कम पी०ई० अनुपात वाली कंपनी के शेयरों में निवेश करते हैं, तो आपको निम्न लाभ हो सकता है—
- कंपनी की आय में वृद्धि होने से आपको लाभ होता है।
- आपको तब लाभ होता है, जब कंपनी की पी०ई० ( P.E )अनुपात में आशीतत वृद्धि होती है।
- जब आप कम पी०ई० ( P.E ) अनुपात वाली कंपनी में निवेश करते हैं, तब उस कंपनी के दूसरे निवेशक निवेश नहीं कर रहे होते हैं। इसलिए उनके शेयरों के मूल्य और अधिक गिरने की संभावनाएं कम हैं। फलस्वरूप आपको अधिक हानि नहीं होगी।
कम पी०ई० ( P.E ) वाली कंपनी के शेयरों में निवेश करने से दो लाभ हैं– एक तो आपको कंपनी के लाभ में वृद्धि होने से लाभ की प्राप्ति होगी, दूसरे कंपनी के औसत पी०ई० अनुपात में संभावित वृद्धि से भी आपको लाभ होगा, किंतु इस स्थिति के लिए आपको प्रतीक्षा करनी होगी।
प्राइज अर्निंग रेशियो
इस अनुपात से ज्ञात होता है कि शेयर की आय से कितने गुना शेयर का मूल्य है। उदाहरण के लिए, एक कंपनी के शेयर का पी०ई० छह है, तो इसका आशय है कि शेयर का मूल्य उसकी आय का छह गुना है तथा यह संभावना है कि यदि कंपनी की प्रति शेयर आय अपरिवर्तित रहे, तो आगामी दो से पांच वर्षों में शेयरधारक को शेयर में निवेश किए गए धन की वापसी उस पर लाभांश या पूंजी-वृद्धि के कारण मिल जाएगी। जितना अधिक पी०ई० अनुपात कम होगा, निवेश धनराशि उतनी ही जल्दी शेयरधारक को वापस मिल जाएगी [पी०ई० अनुपात से कंपनी की सुदृढ़ता, अच्छी ख्याति का पता चलता है।